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झारखंड: पिठौरिया में पुल के लिए तरस रहे 6 से ज्यादा गांव, जान जोखिम में डालकर ग्रामीण करते हैं नदी पार
作者:आईपीएल 2023 ऑरेंज कैप 来源:मुझे एक चुटकुला बताऒ 浏览: 【大中小】 发布时间:2023-09-14 15:53:29 评论数:
झारखंड की राजधानी रांची से महज 15 किलोमीटर दूर स्थित पिठौरिया इलाका,झारखंडपिठौरियामेंपुलकेलिएतरसरहेसेज्यादागांवजानजोखिममेंडालकरग्रामीणकरतेहैंनदीपार विकास की बाट जोह रहा है. पिठौरिया नदी के किनारे बसे लोग एक अरसे से पुल बनने की बाट जोह रहे हैं. पुलिस के न होने की वजह से लोगों को जान जोखिम में डालकर पुल पार करना पड़ता है. लोगों को बारिश के दिनों में दूसरे क्षेत्रों में जाने के लिए नदी में उतरना पड़ता है. रहड़ा पंचायत के अंतर्गत आने वाले गांव, कतरिया बेडा, महुआ, जारा, कौआ और टोंगरी सहित कई गावों के लोग सरकार से पुल की मांग कर रहे हैं.कई वर्षों से जारी मांग के बावजूद अभी तक नदी पर पुल नहीं बना है. इन गांवों के कई लोग नदी में उतरने की वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं. हमेशा यहां दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. ग्रामीण विकास विभाग लोगों के इस दर्द को नजरअंदाज कर रहा है, वहीं नेता वोट मांगने तो यहां आ जाते हैं, लेकिन फिर झांकने नहीं आते.उफनती पिठौरिया नदी के उस पार 7 से 8 गांव राड़हा पंचायत के तहत पड़ते हैं. जंगलों के बीच से नदी को पार करके ही ग्रामीण मुख्य सड़क तक पहुंचते हैं. महिला, बच्चों और बुजुर्गों को भी जरूरतों के लिए ऐसे ही नदी में उतरकर उस पार जाना पड़ता है. उफनती और भारी बारिश के मौसम में यहां खतरा कई गुना बढ़ जाता है.रात में किसी भी आपातकालीन स्थिति में लोगों को इसी तरह से नदी पार करना पड़ता है. स्थानीय ग्रामीण चमड़ा मुंडा कहते हैं कि नदी का जलस्तर कभी-कभी इतना बढ़ा जाता है कि नदी पार करना बेहद मुश्किल हो जाता है. अस्पताल तक पहुंचने से पहले ही लोगों की मौत हो जाती है. यह आलम तब है, जब रांची से इस क्षेत्र की दूरी महज 15 किलोमीटर है.स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां पुल बनाने की मांग वर्षों से हो रही है. लोगों की मांग को न तो अधिकारी सुनते हैं न ही नेता. चुनाव जीते हुए नेता यहां लोगों का हाल तक जानने नहीं आते. नेता 2019 से पहले यहां आए थे लेकिन उसके बाद किसी ने यहां आने के बारे में नहीं सोचा.सविता देवी और गांव की ही अन्य महिलाओं ने कहा कि बच्चों को पीठ पर बांधकर नदी पार करने में उन्हें काफी डर लगता है लेकिन इसके अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है. यूं ही लोगों की जिंदगी कट रही है. पुल अगर यहां बन जाता तो बाजार और मुख्य सड़क तक पहुंचने में उन्हें आसानी होती.नदी के आस-पास बसे गांवों में घनी आबादी है. करीब 4,000 लोग कटारिया बेड़ा, महुआ जाड़ा और अन्य गांवों में रहते हैं. यूं तो नदी पार करने के लिए उन्हें सालभर संघर्ष ही करना पड़ता है लेकिन बारिश के दिनों में जिंदगी बदतर हो जाती है.ग्रामीण प्रशासन की उपेक्षा से बदहाल और व्यथित हैं.ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री आलमगीर आलम ने इस विषय पर कहा है कि वे जांच कराएंगे, फिर जल्द ही पुल बनवाने की पहल शुरू करेंगे. जब हालात राजधानी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ऐसे हैं तो दूरस्थ क्षेत्रों में होने वाले विकास के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है.